झारखंड के प्रमुख त्यौहार
झारखंड के प्रमुख त्यौहार
सरहुल
यह सबसे बड़ा जनजाति उत्सव है जो प्राकृतिक पर्व के रूप में मनाया जाता है यह पृथ्वी और सूर्य के मिलन का पर्व है। सूर्य की शक्ति अर्थात पुरुष की ओर पृथ्वी की प्रकृति अर्थात नारी की प्रतीक है।उन दोनों की संतान मनुष्य को फसल की प्राप्ति हो पर्व का यही लक्ष्य था।
झारखंड का वसंत उत्सव त्यौहार है, जो चेत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।
यह झारखंड की सभी जनजातियों का पर्व है तथा अलग-अलग जातियों में से अलग अलग नाम से जाना जाता है।
उराव जनजाति - खद्दी/खट्टी
खड़िया जनजाति - जकोर
संथाल जनजाति - बा परब /बाहा
मुंडा जनजाति -सरहुल
कुछ जनजाति में इसे होली, पोंगल तथा टूसु कहा जाता है।
मुंडा समाज में सरवन से संबंधित कई दंत कथाएं प्रचलित हैं।
इस पर्व में साल वृक्ष की माता को प्रदर्शित किया जाता है क्योंकि यह स्वीकार किया जाता है कि साल वृक्ष में देवता बंगा निवास करते हैं। यह फूलों का त्यौहार है इस समय साल के वृक्ष में नया फूल खिलते हैं। यह पर वह 4 दिनों तक मनाया जाता है।इस पर्व में मछली के अभिषेक किए हुए जल को घर में छिड़का जाता है तथा उपवास रखा जाता है तथा पहन हर घर की छत पर साल फूल रखता है जिसे फूल खोसी कहा जाता है।
पान द्वारा सरना स्थल पर सरई सखुआ के फूलों की पूजा करता है तथा पहन उपवास रखता है सरना स्थल में महिलाओं पूजा में शामिल नहीं होती पर्व के दूसरा दिन उपवास सरना में लूट तुम हरम तथा लूट कोंबड़ी की पूजा तथा सिंह बोंगा देसावली तथा ग्राम बोंगा का आमंत्रण रहता है।
मांडा
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के तृतीय को आयोजित किया जाता है। इसमें भगवान शिव यानी महादेव की पूजा की जाती है, यह पूजा एक कठिन पूजा है क्योंकि लोहे से शरीर में छेद करना आग पर चलना इत्यादि क्रिया भी संपादित की जाती है। जाते हुए अंगारों पर चलना फुल खूंदी कहलाता है।वक्ताओं को रात में धूप धवन की अग्नि रेखाओं के ऊपर उल्टा लटका कर जलाया जाता है, जिसे धुवांसी से कहा जाता है।
इस पर्व को करने वाले पुरुष को भक्ता कहते हैं जबकि महिला को सोक्ताइन कहते हैं।
करमा
यह जनजातियों का एक अन्य प्रमुख पर है तथा या प्रकृति त्यौहार है जिसमें कर्म की प्रधानता को महत्व दिया जाता है।
यह पर्व भाग्य भादो मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। यह परिक्रमा एवं धर्मा दो भाइयों की कथा पर आधारित है। कर्मा के के प्रकार है तथा झारखंड में से 10 प्रकार से आयोजित किया जाता है-जैसे -राजी करमा, सराय करमा जितिया करमा, बुढी करमा, बंबा करमा इत्यादि।
मुंडा जनजाति में कर्मा की दो श्रेणियां प्रचलित है-
राज करम- व्यक्तिगत रूप से घर आंगन में मनाया जाता है। इसे पारिवारिक पूजा के रूप में भी कहा जा सकता है।
देश करमा - गांव के आखरा में मनाया जाता है। इसे राज कर्मा केेेे विपरीत माना जा स हैै क्योंकि यह सामूहिक पूजाा के रूप में मनाया जाता है। जवा को प्रसाद केेे रूप मेंं वितरित किया जाता है। मुंडााा ओं का विश्वास है कि इस अवसर पर करम गोसाई से जो भी वर मांगा जाता है उसकी प्राप्ति हो जाती है।
उरांव जनजाति में अंडा रखकर पूजा की जाती है ।कर्मा की शाम संजोत कही जाती है इ।रात वाहन कर्मा धर्मा की कहानी सुनाता है।मनपसंद वर तथा वधू की प्राप्ति के लिए युवक युवतियां उपवास रख 'नचवा 'में चूड़ा खीरा दीपक टैक्सी के पत्ते से लेकर आखरा में रखते है।
सदनों में यह पूजा लोकप्रिय है।
छोटा नागपुर के कुछ भागों में प्रत्येक तीसरे वर्ष बूढ़ी कर्मा मनाने की प्रथा इसमें केवल वृधाये में भाग लेती है। यह पर्व विशेषता अकाल पड़ने पर मनाया जाता है।
कुरमाली क्षेत्रों में कुर्मी कन्याएं रक्षाबंधन की जगह करमा पर्व को ही मनाती हैं। हिंदुओं के भैया दूज की भांति भाई-बहन के प्रेम का पर्व है।
सोहराय
धान की फसल की कट जाने के बाद मनाया जाने वाला सराय संस्थानों का सबसे बड़ा पर्व है। यह पशु पूजा के रूप में आयोजित किया जाता है जो कार्तिक माह की अमावस्या दीपावली के दूसरे दिन को मनाया जाता है। यह पर्व 5 दिनों तक मनाया जाता है।
प्रथम दिन:- स्नान के बाद 'गोंड टांडी' (बघान) में जोहर एरा का आह्वान किया जाता है।
दूसरा दिन:- गोहायल पूजा किया जाता है। इस दिन विवाहित लड़कियां भी अपने मायके से आ जाती है।
तीसरा दिन:- 'संटाऊ'होता है।
मांझी पौराणिक आदि से साधारण गृहस्त तक अपने पशुओं को धान की बाती तथा मालाओं से सजाकर खूंटते हैं। तथा बाजा गाजा के साथ सामूहिक रूप से उन्हें भड़काते हुए नाचते कूदते हैं।
चौथा दिन:- जाले होता है।इस दिन युवक-युवतियां प्रत्येक गृहस्थ के यहां नाच गाकर चावल, दाल ,नमक तथा मसाले आदि कट्ठा करते हैं।
पांचवा दिन:-
सह भोज
जोग मांझी के देखरेख में उपयुक्त चीजों की खिचड़ी पकती है तथा सहभोज होता है।
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